किताब
ये किताब , असहाबे शरीअत और अरबाबे तरीक़त को ऐने शरीअत कुबरा से मुस्तफिज़ होने में शरीक व सहिम बनाने वाली एक कोशिश है। चूँकि कोई भी आरिफ व सूफी जब तक साहिबे शरीअत व इस्तिकामत न हो, उस वक़्त तक उसका फ़ैज़ आम नही होता। इस तरह किसी भी आलिमे फ़िक़्हो फतावा का बातिन जब तक तस्फिया व तजलिया के मरहले से नही गुज़रता वह शख्स और बे ज़ोक ही रहता है। निसबते शैख़, सुहबते आरिफ और तवज्जय मर्द कामिल न हो तो तस्फिया ए बातिन मुकम्मल नही। इस लिए ये किताब दोनों जमाअतों के लिए अक्सीर है। यह एक तरफ दीवानो को होश में लाने वाली है तो दूसरी तरफ फ़र्ज़ानों को सलीक़ा ए जज़्बों शौक़ अता करने वाली है।
शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस दहलवी ग्यारहवी/ सत्रहवी सदी के हिंदुस्तान के माया नाज़ आलिमे दीन , फिकहो मुहद्दिस और सूफी व दरवेश है। इल्मे हदीस की इशाअत व अहया के हवाले से बतौर खास आप का नाम लिया जाता है। आप इन उलमाए रब्बानीन में से एक है हक़ तआला ने जिन्हें खुसूसी खलअत कुबूलियत से नवाजा है। आप मुहक़्क़ीक़ होने के साथ हद दर्जा मुअतदिल और मुस्लेह आलिम है। मुफीद और हसिरे तसानीफ़ के हवाले से पूरी दुनिया मे जाने जाते है। आ की किताबें मुख्तलिफ ज़बानों में तर्जुमा हो चुकी है और दुनिया के मुख्तलिफ खित्तों में रहने वाले मुसलमानों के लिए हिदायत और सआदत की बाइस है।
मुतर्जुम किताब
मौलाना हम्माद रज़ा मिस्बाही किशनगंज बिहार के रहने वाले है। 2013 में जामिया अशरफिया मुबारक पुर से फरागत के बाद जामिया आरीफिया के शोबए दावः में दाखिला लिया और यहां का एक सालह दावः कोर्स मुकम्मल किया। आप बा सलाहियत , मुतावाज़े , मेहनती , और जफाकश नोजवान आलिम है। मुलाना मौसूफ़ ने बड़ी उर्क़ रेज़ी से बा मुहराह और सलीस तर्जुमा किया है। खास बात ये है कि तर्जुमा करने से पहले उन्ही ने मरजल बहरैन की मुतअद्दिद फ़ारसी मख्तूतों को सामने रख कर उसको एडिट किया और उसका सही और मुहक़्क़ीक़ नुस्खा तैयार किया । तर्जुमा करते वक़्त उसी मुहक़्क़ीक़ नुस्खे को सामने रखा और हस्बे ज़रूरत असल मख्तूत भी देखते रहे।