आज का दौर साइंसी उलूम की मेराज का दौर है। साइंस का बजातौर पर असरी इल्म ( contemporary knowledge ) से ताबीर किया जाता है। लिहाज़ा दौरे हाजिर में दीन की सही और नतीजा खेज़ इशाअत का काम जदीद साइन्सी बुन्यादों पर ही बेहतर तौर पर सर अंजाम दिया जा सकता है।
इस दौर में इसकी जरूरत पिछले सदियों से कहीं ज्यादा बढ़ कर है। मुस्लिम मुआश्रे में नई साइंसी तालीम को ज्यादा फरोग दिया जाए बढ़ावा दिया जाए। और दीनी तालीम को साइंसि तालीम से दलील पेश करके इस्लाम की हकीकत का बोल बाला किया जाय। आज के मुस्लिम स्टूडेंट के लिए मजहब और साइंस के बीच के तअल्लुक को कुरआन की रोशनी में समझाना बहुत जरूरी है।
मजहब खालिक (Creator) से बहस करता है और साइंस अल्लाह तआला की पैदा करदह खल्क (Creation) से । दूसरी लफ्जों में साइंस का मोजुअ Creation और मजहब का creator से है। ये एक हकीकत है कि अगर मखलूक पर सही तरीके से सोच विचार किया जाएगा तो उसके सामने ये हकीकत खुल कर आएगी।
कुरान में है ( ऐ हमारे रब तूने ये सब बे हिक्मत और बे तदबीर नही बनाया।)
बंदा मोमिन को साइनसी उलूम की तरगीब के जमन में अल्लाह रब्बुल इज्जत ने कुरआन करीम में एक जगह और यू इरशाद फरमाया है।
कुरआन (हम अनकरीब उन्हें कायनात में और उनके अपने (वजूद के) अंदर अपनी निशानिया दिखाएंगे यहां तक कि वो जान लेंगे कि वही हक़ है।
इस आयते करीमा में अल्लाह तआला फरमाता है कि हम इंसान को उसके वजूद के अंदर मौजूद दाखली निशानिया (Internal signs) भी दिखाएंगे और कायनात में जा बजा बिखरी खारजी निशानिया (external signs) भी दिखाएंगे जिन्हे देख लेने के बाद बंदा खुद ब खुद बेताब हो कर पुकार उठेगा कि हक़ सिर्फ अल्लाह ही है।
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