एक इंसान को जीते जी मार देना कैसा लगता है? जीते जी मार देने का मतलब उस इंसान से उनकी इच्छा शक्ति छीन लेना। हर इंसान को सोचने समझने की इजाज़त है हर इंसान की अपनी ख्वाहिशात होते है अब ऐसे में कोई उनकी ख्वाहिश, उसकी इच्छा शक्ति, उसकी समझ बुझ उस इंसान से छीन लिया जाय तो आपही बताइये वो इंसान जीते जी मरा हुआ कि नही।
जिंदा वही है जो ज़िन्दगी खुदके हिसाब खुदके मक़सद खुदके उसूल से जीता हो।
बड़े अफसोस कि बात है हमारे मुआशरे में ये बिल्कुल आम हो गया है कि इंसान से उसकी इच्छा नही पूछी जाती, उसके मन मे क्या है ये भी नही पूछा जाता, और अगर वह इंसान अपनी इच्छा बता भी दे तो लोग सारे मामले उन्ही पे छोड़ देते हैं। अब ऐसे में उस इंसान के पास या तो बहुत सोचने की शक्ति होनी चाहिए जो वो अच्छा फैसला ले सके। लेकिन हद तो तब होती है जब इंसान खुद फैसला लेले फिर भी लोग साथ नहीं देते उसे मजबूर किया जाता है अपनी इच्छा के विरुद्ध काम करने के लिए।
हर इंसान के पास उतनी बड़ी शक्ति नही होती है कि पूरी दुनिया को अकेले झेल जाए कई तो अपनी मस्तिष्क से याद दाश्त खो बैठते हैं, और कोई मजनू बन जाता है।
हमे इंसान को समझना चाहिए उसके ही इच्छा नुसार उसकी जिंदगी गुज़रने की अनुमति होनी चाहिए इंसान पे कभी भी उसके इच्छा के विरुद्ध ज़ोर नही डालनी चाहिए। क्योंकि वो क्यों नही करना चाह रहा, या क्यों करते करते छोड़ दिया, ये बस वही व्यक्ति जनता है जिसके साथ ये सब हुआ है।
हम कैसे एक जीवित इंसान को जिंदा लाश बना रहे हैं अपने मुआशरे में।
अब तो रुक जाओ ऐ ज़िंदा लाशो के ठीकेदारों
अब तो उन लाशों को अपनी जगह पे रहने दो।
ऐसी हालत देख कर शायर ज़बान से निकल ही जाता है। आप लोग इस के बारे में क्या सोचते है हमे ज़रूर कॉमेंट करके बताना।