Hindustan meri kahani बहुत अभाव से बड़ी अमीरी तक सफर

Muz Team
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बहुत अभाव से बड़ी अमीरी तक सफर


गरीब सिर्फ वही नहीं है, जो धन से हार गया है, असली गरीब तो वह है, जो मन से हार गया है। जो यह मान चुका है कि उसका अब कुछ नहीं हो सकता, वह कभी अमीर नहीं हो सकता। जो लोग खाली थाली थामे चांद का सपना देखते हैं, वो गरीब नहीं होते। उनके पास आशा की बहुत बड़ी पूंजी होती है, जिसे वे अपनी तरक्की के मनसूबों पर खर्च कर रहे होते हैं। मतलब, अभाव और गरीबी में फर्क है। अभाव को फटाफट दूर किया जा सकता है, लेकिन गरीबी जाते-जाते ही जाती है।

वह लड़का भी अभावग्रस्त था, जैसे उसकी गली के बाकी लड़के थे। घर के आसपास कोई सुविधा नहीं थी, बस एक बास्केट बॉल की जगह थी, बाकी हर जगह लोग मारे-मारे फिरते नजर आते थे। जहां के लोगों को अभाव बेचैन रखता हो, वहां घर और बाहर भटकते लोगों का दिखना स्वभाविक है।

उस लड़के के परिवार पर तो कुछ ज्यादा ही आफत आन पड़ी थी। ट्रक चालक पिता का एक पैर टूट गया था। पिता कुछ दिनों के लिए खाट पकड़ चुके थे, कमाकर लाने वाला कोई नहीं था। तीन बच्चों सहित पांच लोगों का परिवार दो जून की रोटी के लिए भी तरसने लगा था। पिता की बेशर्म कंपनी ने इलाज करवाने से मना कर दिया, इलाज के पैसे देने से मना कर दिया। न कंपनी ने अपने कर्मचारियों का स्वास्थ्य बीमा करा रखा था और न पिता को पहले जरूरत महसूस हुई थी। पिता कभी कहीं स्थिर काम नहीं कर पाए थे, तो सबने उनसे मुंह फेर लिया। उस लड़के ने अक्सर अपने पिता को परेशान और नौकरी की तलाश में देखा था, लेकिन जब पिता टूटे पैर के साथ चौबीसो घंटे लेटे नजर आने लगे, जब उनकी आंखों से पराजय के आंसू झांकने लगे, जब उनका चेहरा बेबसी में छोटा पड़ने लगा, जब वह अपनों से नजरें चुराने लगे, तब उस छोटे लड़के को दिल से महसूस हुआ कि अभाव किसे कहते हैं। अभाव कैसे तड़पाता है, कैसे रुलाता है और कैसे पराजय की खाई की ओर धकेलता ले जाता है। अभाव किसी भी व्यक्ति, परिवार, समाज और देश, दुनिया का सबसे बड़ा दुश्मन है। सबके पास कम से कम इतनी रोटियां तो हों, छोटी ही सही पूरी छत तो हो, इतने कपड़े तो हों कि मूलभूत अभाव नौ दो ग्यारह हो जाएं।

उस लड़के को झटके से यह लगा था कि उसके प्यारे पिता बेहतर बरताव के हकदार हैं। जब पिता को मदद की सबसे सख्त जरूरत है, जब वह पैरों पर खड़े नहीं हो सकते, तब लोगों ने उन्हें अकेला छोड़ दिया है। पिता के पास इतने पैसे तो होने ही चाहिए थे कि वह अपना सही इलाज करवा पाते और स्वास्थ्य अवकाश के दिनों में परिवार को मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए परेशान न होना पड़ता। लाचार पिता को निहारते हुए उस लड़के ने ठान लिया कि अमीर होना पड़ेगा। इस दुनिया में पैसे कमाए बिना कोई गुजारा नहीं। सपने देखने हैं, उन्हें पूरा करना है, तो पैसे चाहिए और कमाना ही पड़ेगा।

वह लड़का जानता था कि उसके लिए इस गरीबी से बाहर निकलना कितना मुश्किल होगा। हालांकि, सफल होने का उसका सपना किसी भी बाधा से ज्यादा मजबूत था। ऐसा नहीं है कि पैसे कमाने के लिए वह गलत धंधों की अंधेरी गलियों में उतर गया। पैसे के लिए जो लोग अपराध में उतर जाते हैं, दरअसल वे अपने माता-पिता और परिवार का ही अपमान करते हैं। महज 12 की उम्र रही होगी, समाचार पत्र बांटने से आय की शुरुआत हुई, पर तब भी दिल में यही अरमान था कि एक दिन ऐसी कंपनी बनानी है, जो कर्मचारियों का पूरा ध्यान रखती हो, एक ऐसी अच्छी कंपनी, जो कभी पिता को नसीब न हुई। 

खैर, कई रोजगारों से कड़ी मेहनत के साथ गुजरते हुए भी उस लड़के ने अपनी पढ़ाई पूरी की और उसके बाद ही स्वयं का व्यवसाय शुरू किया। कुछ समय में कॉफी रेस्तरां के व्यवसाय में नाम चमकने लगा, लोग उन्हें हॉवर्ड डी शुल्त्ज (जन्म 1953) के नाम से जानने लगे। इन्होंने कॉफी के व्यवसाय को नया रूप दिया और सियेटल शहर के कॉफी कल्चर को बदलकर रख दिया। आज मुखर, मेहनती हॉवर्ड को अमेरिका के बेहतरीन विचारवान उद्यमियों में गिना जाता है। जो लड़का कभी अभाव देखकर प्रेरित हुआ था, आज उसके पास 320 अरब रुपये की संपत्ति है। उनके माता-पिता को कतई अंदाजा नहीं हुआ होगा कि उनका बेटा एक दिन गरीब बस्ती से निकलकर अमेरिका के श्रेष्ठ अमीरों में शुमार हो जाएगा। हॉवर्ड आज भी बहुत सहृदयता से याद करते हैं कि मैंने पिता को अपनी गरिमा और स्वाभिमान की भावना को खोते देखा था। मैंने तभी सोच लिया था, एक दिन जरूर अमीर बनना है। बहुत अमीर होने के बावजूद वह आज भी जमीन नहीं भूले हैं और बेरोजगारों की खूब मदद करते हैं।

प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय 

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