Hubaira Mohammadi |
क्या आप कभी अपने हारने की वजह से डिप्रेशन में गए है?
क्या आपको हारने से दर लगता है?
क्या हारे हुए लोग कभी सफल नहीं होते?
क्या हारने में हमेशा घाटा का सौदा ही होता है?
क्या हार इंसान को खोखला बना देती है?
क्या हार इंसान को सक्सेज होने से रोकती है?
ये कुछ अहम सवाल थे जो हजारों बार पूछे जाते है, मन में सोचे जाते है, ये सवालात मन में आते ही मन घबराने लगता है, लोग दिल थाम कर बैठ जाते है, पता नही और क्या क्या करते है।
क्या आप कभी अपने हारने की वजह से डिप्रेशन में गए है?
ये डिप्रेशन शब्द से दर भय लगने लगता है, डिप्रेशन आने की एक मुख्य कारण ये भी है की हम खुद को छोड़ कर लोगों के बारे में सोचने लगते है कि लोग क्या कहेंगे, मेरे मकान के बार लोग मेरे बाहर में क्या क्या बातें बना रहे होंगे, अरे यार ये सब बस यूंही होता है, हारे आप हो तो आप खुद पे रहम क्यों नहीं खाते, खुदकी प्रॉब्लम्स सॉल्व क्यों नहीं करते, खुदकी और ज्यादा ट्रेंड क्यों नही करते हम डिप्रेशन में चले जाते है क्योंकि हम खुद पे काम नहीं करते। डिप्रेशन में जाने का तो कोई सवाल ही नहीं बनता है। तो आप खुद को डिप्रेशन में डालने की बजाय खुद को डिवेलप कीजिए।
क्या आपको हारने से दर लगता है?
हार से डरना ये एक स्वाभाविक सी बात है , हमारा कल्चर हमे यही सिखाता है लेकिन लेकिन एक कहावत है न अपने ही कल्चर में कि "जो डर गया सो मर गया" ये कहावत वाकई मे आपने अंदर बहुत जोश जुनून समेटे हुए है, इस कहावत की मानो तो आप हार से मत डरना तभी कुछ बड़े और अहम फैसले ले पाओगे। तभी हम अपनी जिंदगी के कुछ ऐसे बड़े फैसले ले पाएंगे जिन्हे लेते वक्त हमारी दिमाग पे बहुत जोर पड़ता हो, और जब तक अहम फैसले नही करेंगे हम खुदमे उलझ कर रह जायेंगे।
मैं एक लड़के की सच्ची कहानी सुनाता हूं। उसी की जबिनी
वो तकरीबन 23, से 25 साल का होगा और उसने अपनी दुकान की बाहर शहर में कुछ कर्ज लेकर जो उसने डर से अपने मम्मी पापा को नहीं बताया , उसे लगता था की उसकी दुकान अच्छी चलेगी और उसकी दुकान अच्छी चलने भी लगी थी लेकिन अचानक वहां पे ओवरब्रिज बनने लगी अचानक से उसकी दुकान थप पड़ गई, और जब ब्रिज बनकर तैयार होगया तो उस दुकान की किराना इतना ज्यादा हो गया था की उसे वो दुकान जमीन मालिक को देनी पड़ी किराए के बदले। वो घर आगया अब कर्ज वाले उसके दरवाजे खटखटाने लगे तो उसने किसी और से लेकर पैसे इस कर्ज वाले को दे दिया ऐसे ही इससे कर्ज लेकर उसको और उससे कर्ज ले कर इसको ऐसा ही चलता रहा जब कर्ज बहुत ज्यादा हो गया तो उसकी अम्मी को ये बात पता चली तो वो अब क्या कर सकती थी जबकि कर्ज तो बहुत ज्यादा हो चुका था जमीन बेचने पड़ी फिर भी कर्ज बाकी ही है और अभी तक यही सिलसिला जारी है। " तो आप सभी लोगों ने तो पढ़ ही लिया होगा, की डर इंसान को और भी डरा देता है, अगर वो उसी दीन मम्मी पापा को कर्ज के बारे में बता देता तो शायद कुछ ही दिनों में कर्ज चुकता हो जाता।
क्या हारने में हमेशा घाटा का सौदा ही होता है?
हार हमे खुद के बारे में बताती है कि हम किया है और कौन। जबकि एक महापुरुष को कई कई साल लग जाते है खुदके बारे में पता करने में, हारने के बाद हमारे हाथ से बस छोटी सी चीजें जाति है लेकिन अगर हम अपने हार को हथियार बनालें तो उससे कई गुना ज्यादा बना सकते है जिससे हम ने कुछ ही दिनों पहले हारा था। हार कभी घाटा का सौदा नहीं होता अगर हार से सबक सिखा जाए तो।
क्या हार इंसान को खोखला बना देती है?
हार इंसान को एक मोका देता है खुद को साबित करने का की हमे जिस तराजू पे तोला जा रहा है उससे कहीं ज्यादा है वजन हमारी। हार इंसान को और मजबूत बनाती है। एक चीज के कई सारे पहलू होते है। जैसे मिसाल के तौर पे एक बाइक है लेकिन उसका इंजन कोई और बनाता है टायर कोई और , वाशिंग कोई और अगर हम एक चीज सिख ले अपनी दुकान कर ले दुकान चलने लगी और दूसरा बंदा वही काम सिख कर दुकान किया लेकिन उसकी दुकान चली नई अब वो बंदा इंजन के साथ वाशिंग भी सिखलिया के इससे काम चलेगा अब भी नही चला फिर उसने पंचर का भी काम सिख लिया अब वो फिर से दुकान किया तो उसकी दुकान पहले वाले भाई से भी ज्यादा चलने लगी क्युकी वो तीनों काम कर रहा है तीनों तरह के कस्टमर उनके पास आते है तो आप कैसे कह सकते है की हारने वाला व्यक्ति अंदर से खोखला होता है जबकि हार की वजह से वो और भी मजबूत होता चला जाता है।
क्या हार इंसान को सक्सेज होने से रोकती है?
हार ही तो इंसान के लिए सक्सेस की पहली सीढ़ी है, हारता वही है जो मैदान में हिस्सा लिया हो जो मैदान में हिस्सा लिया ही न हो वो हारेगा कैसे।